अभी हाईकोर्ट का एक फैसला आया है जिसमे ये कहा गया है की आयुर्वेदिक और होमियोपैथिक डॉक्टर एलोपैथ की दवाएं अपने मरीजो को नहीं लिख सकेंगे .ये निर्णय तकनिकी रूप से बिलकुल सही है ,पर इसके कुछ दूरगामी दुष्परिणाम भी हो सकते है .भारत जैसे देश में जहाँ शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ बदहाली की स्थिति में है ,वहाँ ऐसे आदेश जनहित में तो नहीं ही कहे जा सकते .
भारत में ऐसे इलाकों की कमी नहीं है ,जो बुनियादी नागरिक सुविधाओं से अभी भी वंचित है .बीमारू राज्यों की स्थिति तो और भी ख़राब है .पिछली कुछ पंचवर्षीय योजनाओं में सरकार के सतत प्रयास के चलते शिक्षा के हालात जरूर सुधारें है पर स्वास्थ्य सुविधाओ की उपलब्धता बहुत कम है .कई इलाकों में तो मामूली बुखार होने पर एक पैरासिटामाल की टैबलेट मिलने की सम्भावना नहीं होती है .किसी गंभीर बीमारी की स्थिति में मीलों पैदल जाने पर सरकारी अस्पताल के दर्शन होते है .इसके बाद भी ये जरूरी नहीं की वहां डाक्टर भी मौजूद हो ,और जरूरी चिकत्सकीय सुविधाएँ भी .
ऐसे हालत में उस व्यक्ति की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है जो एक पिछड़े इलाके के मरीज को प्राथमिक चिकित्सकीय सुविधा मुहैया कराता है भले ही वो कम पढ़ लिखा या अप्रशिक्षित ही क्यों न हो .अभी कुछ दिनों पहले ये खबर आई थी की भारत के पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रो में ,जहाँ पर्याप्त सुविधाएँ नहीं है ,ऐसे झोलाछाप या अप्रशिक्षित लोगो को कुछ प्रशिक्षण दे कर मेडिकल प्रेक्टिस का लाइसेंस दे दिया जाये .अगर ऐसा हो पाये तो हालत जरूर थोड़े बेहतर हो सकेंगे .
हमारे देश में एलोपैथ डाक्टरों की संख्या और एलोपैथ दवाओं की उपलब्धता में भारी अंतर है .डाक्टर जहाँ बेहद कम है वही दवाएँ बहुत अधिक मात्रा में.होम्योपैथ और आयुर्वेदिक दवाओं की उपलब्धता तो बड़े बड़े महानगरों तक में बेहद सीमित है .ऐसे में अन्य डाक्टरों की यह मजबूरी बन जाती है की वो अपने मरीजों को एलोपैथ की दवाए ही लेने की सलाह दे .हमारे आसपास ऐसे कई डाक्टर है जिनकी पढाई होम्योपैथिक या आयुर्वेदिक पद्धति की है पर उनकी दवाएँ एलोपैथिक होती है . इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए जादा अच्छा तो ये होता की इन डाक्टरों के अनुभव और ज्ञान के आधार पर इन्हें एक विशेष प्रकार का लाइसेंस जारी किया जाये ,जिससे दूर दराज के ग्रामीण इलाकों की जनता को जीवनरक्षक सेवाएँ मिलती रहे .
जिस तरह सर्वशिक्षा अभियान में अप्रशिक्षित अध्यापको की नियुक्ति करके साक्षरता के आंकड़े में काफी हद तक सुधार किया जा सका ,उसी तरह देश में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए ये आवश्यक है की इस सेवा से जुड़े अप्रशिक्षित लोगो को जरूरी प्रशिक्षण दे कर उन्हें एक नियमबद्ध लाइसेंस जारी कर दिया जाए .इस तरह वो सरकारी नियम क़ानून के दायरे में भी रहेंगे और नागरिकों के लिए हर जगह प्राथमिक चिकित्सा की सुविधाएँ भी उपलब्ध रहेंगी .
भारत में ऐसे इलाकों की कमी नहीं है ,जो बुनियादी नागरिक सुविधाओं से अभी भी वंचित है .बीमारू राज्यों की स्थिति तो और भी ख़राब है .पिछली कुछ पंचवर्षीय योजनाओं में सरकार के सतत प्रयास के चलते शिक्षा के हालात जरूर सुधारें है पर स्वास्थ्य सुविधाओ की उपलब्धता बहुत कम है .कई इलाकों में तो मामूली बुखार होने पर एक पैरासिटामाल की टैबलेट मिलने की सम्भावना नहीं होती है .किसी गंभीर बीमारी की स्थिति में मीलों पैदल जाने पर सरकारी अस्पताल के दर्शन होते है .इसके बाद भी ये जरूरी नहीं की वहां डाक्टर भी मौजूद हो ,और जरूरी चिकत्सकीय सुविधाएँ भी .
ऐसे हालत में उस व्यक्ति की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है जो एक पिछड़े इलाके के मरीज को प्राथमिक चिकित्सकीय सुविधा मुहैया कराता है भले ही वो कम पढ़ लिखा या अप्रशिक्षित ही क्यों न हो .अभी कुछ दिनों पहले ये खबर आई थी की भारत के पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रो में ,जहाँ पर्याप्त सुविधाएँ नहीं है ,ऐसे झोलाछाप या अप्रशिक्षित लोगो को कुछ प्रशिक्षण दे कर मेडिकल प्रेक्टिस का लाइसेंस दे दिया जाये .अगर ऐसा हो पाये तो हालत जरूर थोड़े बेहतर हो सकेंगे .
हमारे देश में एलोपैथ डाक्टरों की संख्या और एलोपैथ दवाओं की उपलब्धता में भारी अंतर है .डाक्टर जहाँ बेहद कम है वही दवाएँ बहुत अधिक मात्रा में.होम्योपैथ और आयुर्वेदिक दवाओं की उपलब्धता तो बड़े बड़े महानगरों तक में बेहद सीमित है .ऐसे में अन्य डाक्टरों की यह मजबूरी बन जाती है की वो अपने मरीजों को एलोपैथ की दवाए ही लेने की सलाह दे .हमारे आसपास ऐसे कई डाक्टर है जिनकी पढाई होम्योपैथिक या आयुर्वेदिक पद्धति की है पर उनकी दवाएँ एलोपैथिक होती है . इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए जादा अच्छा तो ये होता की इन डाक्टरों के अनुभव और ज्ञान के आधार पर इन्हें एक विशेष प्रकार का लाइसेंस जारी किया जाये ,जिससे दूर दराज के ग्रामीण इलाकों की जनता को जीवनरक्षक सेवाएँ मिलती रहे .
जिस तरह सर्वशिक्षा अभियान में अप्रशिक्षित अध्यापको की नियुक्ति करके साक्षरता के आंकड़े में काफी हद तक सुधार किया जा सका ,उसी तरह देश में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए ये आवश्यक है की इस सेवा से जुड़े अप्रशिक्षित लोगो को जरूरी प्रशिक्षण दे कर उन्हें एक नियमबद्ध लाइसेंस जारी कर दिया जाए .इस तरह वो सरकारी नियम क़ानून के दायरे में भी रहेंगे और नागरिकों के लिए हर जगह प्राथमिक चिकित्सा की सुविधाएँ भी उपलब्ध रहेंगी .
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