पिछले दिनों
रॉक स्टार देखी .इम्तिआज़ अली ने एक बहुत ही खूबसूरत फिल्म बनाई है .फिल्म पूरी तरह से एक प्रेम कहानी है पर यह कहानी उन तमाम कहानिओ से बिलकुल अलग है जो हम अब तक देखते आये है .फिल्म में दिखाई गई प्रेम कहानी की शुरुवात तो बड़े ही मजाकिया ढंग से होती है लेकिन कहानी के विकास के साथ साथ इस कहानी का स्वभाव बदलने लगता है .शोखी और चुहल से भरा प्रारंभिक प्रेम अंत तक विध्वंसक हो जाता है .एह दोधारी तलवार की तरह दोनों को मारता है .
फिल्म को देखने के बाद धर्मवीर भारती के उपन्यास गुनाहों का देवता की याद तजा हो गई .इस उपन्यास का प्रेम भी प्रेमी जोड़े को पनपने नहीं देता दोनों धीरे धीरे प्रेम की तीव्रता में घुलते जाते है .इम्तियाज ने भी अपने प्रेमी जोड़े को इसी अंजाम तक पहुचाया है .
ये दो उदाहरण कल्पना की दुनिया के है जहाँ प्रेम एक नकारात्मक परिणाम तक पहुचता है पर असल जिंदगी में प्रेम की क्या स्थिति है ?क्या प्रेम की प्रकृति विध्वंसक है ?क्या वह कोई विकार है ?इसका जवाब तो कोई दार्शनिक या पागल ही दे सकता है ,पर ये सवाल हमें पल भर ठहर कर सोचने को मजबूर अवश्य करते है .प्रेम की प्रकृति तो चाहे विध्वंसक न हो पर उसकी परिणति जरूर विध्वंसक है .सामाजिक विसंगतियां प्रेम जैसे सात्विक भाव को मलिन कर देती है .जिसके कारण प्रेम का फल मीठा के बजाये कडुआ हो जाता है .ऊपर के दोनों उदाहरणों में सामाजिक जटिलताएं ही असली खलनायक हैं .प्रेम को जहरीला येही बनाती है .इन्ही के चलते प्रेम जैसा सर्वोच्च सृजनात्मक भाव आत्म-हन्ता भाव बन जाता है .
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