अभी लखनऊ में निर्मल बाबा पर एक और केस दर्ज किया गया .जो धाराएँ लगी हैं वो हैं -417,419 व 420. निर्मल बाबा सवालों से घिरते जा रहें हैं.उनके भक्तों की संख्या में भी गिरावट दर्ज की गई है . तो जाहिर है की खाते में आने वाली रकम की ग्रोथ भी कम हुई होगी .निर्मल बाबा जब अपनी सफाई में कुछ कहते है तो वह निरर्थक और अनर्गल प्रलाप की तरह लगता है .मुहावरे में इसे "सिट्टी पिट्टी गुम होना" कहा जाता है .उनकी बातों में तार्तम्यता का घोर आभाव नजर आता है .उनकी बातों में कोई आध्यत्मिक टच भी नहीं होता है .वो किसी आध्यात्मिक परंपरा से जुड़े भी नहीं है .उनकी वाक्कुशलता भी कुछ खास नहीं है, की इतने लोग उनके मायाजाल में फंस सके .उनसे बेहतर लच्छेदार बातें तो बन्दर नचाने वाले या बस अड्डे पर चूरन या तेल बेचने वाले कर लेते है .निर्मल बाबा अपने भक्तों को जो उपाय बतातें है वो भी प्रथमदृष्ट्या ऊलजलूल ही जान पड़ते है .तो फिर सवाल ये है की निर्मल बाबा का कारोबार कैसे चल निकला ?
दरअसल निर्मल बाबा ने देश की दुखी परेशानहाल जनता की भावुकता का जबदस्त दोहन किया .हम आम भारतीय नागरिको की यह मानसिकता है कि हम परिश्रम और ईमानदारी से सुखी होने के बजाये चमत्कारों के दम पर सुखी होनाचाहते है .हम चाहते है की मंदिर में 50 रू का प्रसाद चढ़ा कर हमें 5 लाख का लाभ हो .हमारी यही मानसिकता भारतीय बाबाओं को अरबपति बना कर उन्हें भगवन की तरह पूजती है
दरअसल निर्मल बाबा ने देश की दुखी परेशानहाल जनता की भावुकता का जबदस्त दोहन किया .हम आम भारतीय नागरिको की यह मानसिकता है कि हम परिश्रम और ईमानदारी से सुखी होने के बजाये चमत्कारों के दम पर सुखी होनाचाहते है .हम चाहते है की मंदिर में 50 रू का प्रसाद चढ़ा कर हमें 5 लाख का लाभ हो .हमारी यही मानसिकता भारतीय बाबाओं को अरबपति बना कर उन्हें भगवन की तरह पूजती है
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