जून के दूसरे हफ्ते में अखबारों में दो ख़बरें बड़ी आम होती है ,एक तो मानसून के आने या न आने की खबर और दूसरी ,बोर्ड परीक्षाओं के टापर की ख़बरें .अभी स्थिति ये है की मानसून से जुडी ख़बरें आ रही है और टापर से जुडी ख़बरें आ चुकी है .पर इनमे जो खबर लम्बे समय तक याद रहने वाली है वो है दिव्या की.
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दिव्या चेन्नई की रहने वाली है और उसने हाईस्कूल के एक्जाम में लगभग 86% अंक हासिल किए है.
दिव्या का कहीं कोई घर नहीं है .उसके माँ बाप भी नहीं है . वो फुटपाथ पर रहती है अपने छोटे भाई बहनों और दादी के साथ .
हम जिन तकलीफों और प्रयासों की कल्पना भी नहीं कर सकते ,वो सब दिव्या ने अपनी पढाई जारी रखने के लिए सहे और किये है .दिव्या ने स्ट्रीट लैम्प की रोशनी में देर रात तक जग कर पढाई की है .दिव्या ने आँधी तूफ़ान में अपनी किताबो को बड़े जतन से बचाया है .उसने शराबियों ,गुंडों और तमाम असामाजिक तत्वों से लड़कर पढने के लिए सुकून तलाशा है .उसने खुले आकाश के नीचे मोटर गाड़ियों के शोर शराबे में एक कठोर साधक की तरह अपना ध्यान स्थिर रखा है .तमाम व्यंग और ताने सुने है उसने. .....पर दिव्या ने वो कर दिखाया जो तमाम सुख सुविधाओं में पलने वाले बच्चे अक्सर नहीं कर पाते .
ऐसा नहीं है की दिव्या का साहस कभी डगमगाया न हो .वो कई बार टूट टूट कर सम्हली है .बिखर बिखर कर समेटा सहेजा है खुद को.एक समय तो ऐसा भी आया था जब दिव्या ने ये फैसला किया की अब वो पढाई नहीं कर पायेगी .पर उसके स्कूल के एक टीचर ने फिर से उसकी हिम्मत बढाई .लड़ाई तो सारी दिव्या ने खुद लड़ी ,पर उसके टीचर एक तिनके के सहारे के रूप में उसके साथ रहे .
दिव्या ने ये सब कुछ किया किसी पारिवारिक ,सरकारी या गैरसरकारी मदद के बिना .उसके व्यक्तिगत साहस ,जुझारूपन और जूनून ने उसे आज ये सफलता दिलाई .दिव्या आज उन लोगों के लिए मिसाल बन गई है है जो विपरीत परिस्थितियों से समझोता कर लेते है और अपने लक्ष्य से भटक जाते है .
सच ही है जिनके सिर पर छत नहीं होती , उनका सारा आकाश होता है .
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दिव्या चेन्नई की रहने वाली है और उसने हाईस्कूल के एक्जाम में लगभग 86% अंक हासिल किए है.
दिव्या का कहीं कोई घर नहीं है .उसके माँ बाप भी नहीं है . वो फुटपाथ पर रहती है अपने छोटे भाई बहनों और दादी के साथ .
हम जिन तकलीफों और प्रयासों की कल्पना भी नहीं कर सकते ,वो सब दिव्या ने अपनी पढाई जारी रखने के लिए सहे और किये है .दिव्या ने स्ट्रीट लैम्प की रोशनी में देर रात तक जग कर पढाई की है .दिव्या ने आँधी तूफ़ान में अपनी किताबो को बड़े जतन से बचाया है .उसने शराबियों ,गुंडों और तमाम असामाजिक तत्वों से लड़कर पढने के लिए सुकून तलाशा है .उसने खुले आकाश के नीचे मोटर गाड़ियों के शोर शराबे में एक कठोर साधक की तरह अपना ध्यान स्थिर रखा है .तमाम व्यंग और ताने सुने है उसने. .....पर दिव्या ने वो कर दिखाया जो तमाम सुख सुविधाओं में पलने वाले बच्चे अक्सर नहीं कर पाते .
ऐसा नहीं है की दिव्या का साहस कभी डगमगाया न हो .वो कई बार टूट टूट कर सम्हली है .बिखर बिखर कर समेटा सहेजा है खुद को.एक समय तो ऐसा भी आया था जब दिव्या ने ये फैसला किया की अब वो पढाई नहीं कर पायेगी .पर उसके स्कूल के एक टीचर ने फिर से उसकी हिम्मत बढाई .लड़ाई तो सारी दिव्या ने खुद लड़ी ,पर उसके टीचर एक तिनके के सहारे के रूप में उसके साथ रहे .
दिव्या ने ये सब कुछ किया किसी पारिवारिक ,सरकारी या गैरसरकारी मदद के बिना .उसके व्यक्तिगत साहस ,जुझारूपन और जूनून ने उसे आज ये सफलता दिलाई .दिव्या आज उन लोगों के लिए मिसाल बन गई है है जो विपरीत परिस्थितियों से समझोता कर लेते है और अपने लक्ष्य से भटक जाते है .
सच ही है जिनके सिर पर छत नहीं होती , उनका सारा आकाश होता है .
- फोटो -THE HINDU से साभार
- "सारा आकाश " वरिष्ठ लेखक राजेंद्र यादव का मशहूर उपन्यास है .
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