रविवार, 6 मई 2012

टीम अन्ना का बिखरता सम्हलता आन्दोलन

अन्ना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ  एक  जरूरी  मुहीम  शुरू  की  थी .वास्तव  में ये कोई  राजनीतिक प्रयास   न हो  कर एक   नागरिक  प्रयास  था .इस  आन्दोलन  में प्रत्यक्ष  और अप्रत्यक्ष रूप में एक  बड़े  जन  समूह ने हिस्सा लिया .मीडिया और सोशल  नेटवर्किंग  साइटों  ने भी अहम्  भूमिका  निभाई .आन्दोलन  ने संसद से सड़क  तक  काफी  हंगामा  खड़ा  किया .एक समय   तो लगने लगा था  की यह लड़ाई एक  निर्णायक  मुकाम  तक  पहुच   जायेगी पर कुछ  वाजिब  और कुछ  गैरवाजिब  कारणों  के चलते यह  आन्दोलन  विखर गया .
इतिहास  साक्षी  है की लगभग  सभी आन्दोलन  विखर -विखर  कर ही सम्हले है .सैद्धांतिक  रूप  से इस की व्याख्या बड़ी सरल  है .कोई भी  आन्दोलन  कई चरणों  में अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है .जिस  प्रकार  हथोड़ी से बार बार  प्रहार  करने पर एक  सार्थक  ध्वनि  उत्पन्न  होती है ,उसी प्रकार  एक  आन्दोलन  को भी  बार बार अपने विपक्षी  पर प्रहार करना  होता है ,यह  प्रहार  हथोड़े के प्रहार  से भिन्न होता है .यह प्रहार एक मुट्ठी चावल की तरह होता है जो अपने लक्ष्य से टकरा कर  विखर जाते है .आन्दोलन के संचालकों  को उन  दानो  को फिर एकत्त्र कर के अगले प्रहार  के लिए तैयार करना होता है .एह क्रम  कई बार चलाना होता है पूरी निष्ठा और धैर्य के साथ .
टीम अन्ना का आन्दोलन एक  ऐसे ही दौर से गुजर रहा है .यह पहले चरण  का प्रहार करके विखर  गया है .पर यह कोई  निराशाजनक  स्थिति नहीं है बल्कि यह आन्दोलन  के विकास  की एक  अनिवार्य  अवस्था  है ,जरूरत इस बात की है  की आन्दोलन  की विखरी  कड़ियों को जोड़ा जाए ,उन्हें  पुनः संगठित  किया जाए  और नए  प्रहार की तैयारी की जाये .




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