उनकी सत्ता
ये फेटें सत्ते पे सत्ता
सत्ता की छत्ता में
ये घुमड़े मदमत्ता
हाथ में साधे छूरी चाकू
मुहँ में चापें पान का पत्ता
संसद में भरें कुलांचे
भये इकठ्ठा सारे लत्ता
जनता के दुःख सुख खट्टा मिट्ठा
मुद्दे हो गए दही और मट्ठा
कान में लुकड़ी डाल के
सोयें मुलुक के कर्ता धर्ता
जो चाहे वो बहे बिलाए
इनको तो बस
कोई फरक नहीं अलबत्ता
क्या बात है नीरज जी | सत्य कहा है |
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