गुरुवार, 2 अगस्त 2012

मदारी पार्टी अब चुनाव लड़ेगी ?

पिछले एक हफ्ते से जंतर मंतर पर चल रहा तमाशा अब थमने जा रहा है .टीम अन्ना अपना तम्बू उखाड़ने जा रही है .जनता, मीडिया और सरकार की उपेक्षा से आहत टीम अन्ना ने अपनी दूकान समेटने से पहले एक शिगूफा ज़रूर छोड़ा है कि अब वो राजनीतिक खेल दिखायेगी .टेलीविजन पर एक विज्ञापन आता है - "आज कुछ तूफानी करते है ",तो टीम अन्ना अब कुछ तूफानी करने वाली है .टीम अन्ना का ये रुख स्पष्ट होते ही मोबाइल कंपनियों ने अपनी कमाई शुरू कर दी .एस एम एस के बहाने जनता के जेब काटने का खुला खेल फर्रुखाबादी शुरू हो चूका है .अगर आपकी राय हाँ या ना है तो आप भी इसमें हिस्सा ले सकते है .

टीम अन्ना के सक्रिय  सदस्य " दी ग्रेट अरविन्द केजरीवाल " का अभी कल तक ये कहना था की वो खुद को बलिदान कर देंगे ,पर अनशन नहीं तोड़ेंगे .इस बार टीम अन्ना नया आइटम पेश कर रही थी ,हमेशा की तरह भ्रष्टाचार पर सीधा हमला नहीं किया जा  रहा था .इस बार के शो का नाम था "१५ भ्रष्ट मंत्रियो को जेल भेजो ".इस सम्बन्ध में स्वयं अन्ना का कहना था की इन मंत्रियो के जेल जाने तक अनशन चलता रहेगा .इस घोषणा  के साथ वो स्वयं भी मंच पर उतर  आये थे ,आज उनके अनशन का तीसरा दिन है .पर तमाशे में कुछ गर्मी नहीं आई .भीड़ जरूर जुटी पर मीडिया और सरकार ने ख़ास तवज्जो ना दिया .टीम अन्ना के भोपू "कुमार विश्वास ", जो घटिया फूहड़ मंचीय कविताओं के लिए जाने जाते है ,मंच से और टी वी चैनलों पर यथाशक्ति चिल्लाते रहे .पर तमाशे में  रंग न भर सका .....लेकिन ......लेकिन अचानक टीम अन्ना की आंखे खुल गयी .उन्हें बोधि प्राप्त हो गया .लोकतांत्रिक संस्थाओ को गरियानी वाली टीम अन्ना अधिक  देर होने से पहले अपने आन्दोलन  की निरर्थकता को भांप गयी .अब वो गीता के कर्मयोग का पालन करते हुए जनता के दरवाजे पर जाएगी .उनसे वोट की भीख  मांगेगी .अपनी सरकार बनाएगी और फिर लोकपाल विधेयक पास कराएगी .इस पूरे कार्यक्रम में कुमार विश्वास और अरविन्द केजरीवाल जनता का उत्तेजक मनोरंजन करते रहेंगे ........

आज टीम अन्ना ने बिलकुल उन नेताओं जैसा व्यवहार किया है जिनके खिलाफ वो अब तक लडती आई है .मध्यवर्ग के जिस असंतोष का नेतृत्व टीम अन्ना कर रही थी ,आज उस असंतोष में थोडा और इजाफा हुआ है .जिस तरह नेता जनता को  ठगते आये है उसी तरह आज टीम अन्ना ने भी उसे  ठगा है .आज लडखडाती  टीम अन्ना के पास कोई सहारा नहीं है .भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके अहिंसक ,गांधीवादी आन्दोलन  की हवा निकल गयी है .टीम अन्ना के सदस्यों को तो गांधी दर्शन का ग भी पता नहीं होगा .अब तो ये आशंका होने लगी है किअरविन्द केजरीवाल अपनी राजनीतिक हसरतो को पूरा करने के लिए कहीं अन्ना का इस्तेमाल तो नहीं कर रहे थे .आज उन्होंने इस आन्दोलन   कि तुलना जे पी आन्दोलन से कीऔर कहा कि लालू और मुलायम जैसे नेता इसी आन्दोलन से पैदा हुए .तो क्या अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन का सिर्फ इतना ही हासिल है कि इससे अरविन्द केजरीवाल और कुमार  विश्वास जैसे नेता पैदा होंगे ?और ये वही सब करेंगे जो लालू और मुलायम कर रहे है .?

बाबा रामदेव और टीम अन्ना की  राजनीतिक हसरतें अब किसी से छुपी नहीं है .दुखद तो ये है कि जनता को जो सब्जबाग इन्होने परोसे ,अब उसको दुहने की तैयारी कर रहे  है .अगस्त २०१० में टीम अन्ना ने जो  फसल बोई  थी  अब उसको काटने की  बारी है .....और मासूम जनता इन मदारियों के नए खेल का इन्तजार कर रही है .

मंगलवार, 24 जुलाई 2012

संगमा की बौखलाहट


राष्ट्रपति चुनाव के  नतीजे सामने है .प्रणव मुखर्जी के पक्ष में जो अंकगणित  थी , ये परिणाम उसी के अनुरूप है .प्रणव ने भारी जीत दर्ज की है .इसमें संप्रग गठबंधन का तो हाथ है ही साथ ही उनकी निजी छवि ने भी वोट जुटाने में अहम् भूमिका  अदा की है .प्रणव आज की राजनीति में उन कुछ बिरले नेताओं में से है जिनकी पैठ हर दल में है . वे राजनीति के पुराने धुरंधर  है जिनके पास एक लम्बा प्रशासनिक और संसदीय अनुभव है .उनके जैसे कार्यकर्ता के लिए ये उचित ही है की उनकी विदाई देश के सर्वोच्च पद से हो .राष्ट्रपति चुनाव परिणाम को ले कर आज पूरे देश में संतोष और  स्वागत  का भाव है ., एक शख्स को छोड़ कर .ये है उनके प्रतिद्वंदी पी ए संगमा.

प्रणव मुखर्जी को जीत की औपचारिक  बधाई देने के बाद उन्होंने कोर्ट जाने  की बात  कही है .वे राष्ट्रपति चुनाव परिणाम को हाईकोर्ट में चुनौती देंगे .इससे पहले वे प्रणव की उम्मीदवारी को अदालत में चुनौती  दे चुके है .पर कोर्ट ने उनकी यह अपील ख़ारिज कर दी थी .

अपने प्रचार के दौरान संगमा की बेचैनी कई रूपों में सामने आ चुकी है .उन्होंने देश के पहले आदिवासी  राष्ट्रपति के रूप में चुने जाने की अपील की .अंतरात्मा की आवाज के आधार पर वोट करने को कहा .अंत तक वो कहते रहे की परिणाम आने के बाद कुछ चमत्कार अवश्य होगा .पर ऐसा कुछ न हो सका .संगमा खुद भी लम्बा राजनीतिक अनुभव रखते है .लोक सभा अध्यक्ष  के रूप में उन्होंने काफी प्रतिष्ठा अर्जित की थी .उन्हें इतना तो पता होगा ही की चुनाव अंतरात्म्मा की आवाज  के आधार पर न तो लड़े जाते है ना ही चमत्कारों के दम पर जीते जाते है .एक नेता की व्यक्तिगत  खूबियाँ और उसका योगदान ही ऐसे मौके पर काम आता है .पर इसको क्या कहा जाय की वो अपने राज्य मेघालय में भी प्रणव मुखर्जी से पीछे रहे .उनके राज्य के जनप्रतिनिधियों ने भी उनके इस चमत्कारी अनुष्ठान में उनका साथ नहीं दिया . यही नहीं संगमा के समर्थन में आये राजग के घटक दलों में भी उनको ले कर आम राय नहीं बन पायी .जनता दल( यू) और शिवसेना ने उनके खिलाफ वोट किया .उन्हें ममता बनर्जी के  समर्थन की पूरी आस थी पर आखिरी  वक्त में वे भी बंगाली मानुष के साथ हो ली .फिर ये समझ में नहीं आता की संगमा को अपनी जीत की आस क्यूँ कर थी .

संगमा एक ओर अपनी हार को स्वीकार तो चुके है ,पर शायद चमकारों पे उनका भरोसा अब भी कायम है .वे कोर्ट के सहारे राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया को कटघरे में खड़ा करना चाहते है .ऐसे में संगमा जैसे वरिष्ठ  नेता कुछ जरूरी बातों को भूल जाते है ,जिनका अहसास उन्हें हर पल होना चाहिए .भारत में राष्ट्रपति चनाव की अपनी एक गरिमा है. देश के सर्वोच्च पद का ये चुनाव सदा विवादों से परे रहा है .पर लगता है ,संगमा को  इस परंपरा की तनिक भी परवाह नहीं है .वो इतिहास में एक शर्मनाक मोड़ लाना चाहते है .ये  स्थिति बेहद निराशजनक  है .अब देखना है कि वे इस सर्वोच्च पद कि मर्यादा का सम्मान करते है या अपनी बौखलाहट छुपाने का ये आखिरी दाव भी आजमाते है .

शनिवार, 21 जुलाई 2012

कुछ टूटा फूटा


जिनके कट्टा
उनकी सत्ता

ये फेटें सत्ते पे सत्ता

सत्ता की छत्ता  में
ये घुमड़े  मदमत्ता

हाथ में साधे छूरी  चाकू
मुहँ में चापें  पान का पत्ता
संसद में भरें कुलांचे
भये इकठ्ठा सारे लत्ता

जनता के दुःख सुख खट्टा मिट्ठा
मुद्दे हो गए दही और मट्ठा
कान में लुकड़ी डाल के
सोयें मुलुक के कर्ता धर्ता

जो चाहे वो बहे बिलाए
इनको तो बस
कोई फरक नहीं अलबत्ता


बुधवार, 18 जुलाई 2012

मैं तेरी आँखों में आंसू नहीं देख सकता ,पुष्पा !

बचपन में मार धाड़ वाली फिल्मे मुझे बहुत पसंद थी .जिसमे हीरो एक साथ कई गुंडों की धुनाई करता था .पर उम्र बदली तो पसंद भी बदली .कोई दसवीं क्लास में था ,जब पहली बार मैंने "आनंद " देखी  थी .हृषिकेश मुखर्जी की अद्भुत रचना है ये फिल्म .आनंद के रूप में एक अनूठा चरित्र पेश किया था उन्होंने ,जो तब से पहले हिंदी सिनेमा का हिस्सा नहीं था .एक क्लासिक फिल्म के सारे स्वाद है इस फिल्म में ...ये सारी बाते तो बाद में पता चली .थोडा और बड़े होने पर .उस वक्त जिस चीज ने दिल को सबसे जादा छुआ वो थी राजेश खन्ना की  नायाब अदाकारी ..आनंद की रचना तो जरूर हृषिकेश मुखर्जी ने की थी ,पर उसे जीवंत बनाया राजेश खन्ना ने .अपने सरल और सहज अभिनय से उन्होंने आनंद को हिंदी सिनेमा का अमर चरित्र बना दिया .इस रोल ने मेरे मन पर ऐसी  छाप छोड़ी कि  राजेश खन्ना की हर फिल्म में वो मुझे आनंद  ही नजर आये .अगर भारतीय फिल्म इतिहास की सारे नायकों की पड़ताल की जाये तोमेरी समझ से कोई दूसरा कलाकार  आनंद के रोल में फिट न बैठता .ये किरदार सिर्फ वो ही निभा सकते थे .और उन्होंने बखूबी निभाया भी .

वो हमारे  हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार थे .जो स्टारडम,जो शोहरत राजेश खन्ना के हिस्से आई वो फिर किसी को नहीं मिली . उन्हें देखने के लिए दीवाने दर्शको की भीड़ लग जाती थी .उनकी गाड़ियों पर प्रेम सन्देश  लिखे जाते थे .लडकिया उनकी तस्वीर  से शादी रचाती थी ....फिल्म उद्योग में ऐसा एखलाक, ऐसी स्वीकार्यता किसी को नहीं मिली..... .वो एक बेहतर कलाकार  ही नहीं एक बेहतर इंसान भी थे .

राजेश खन्ना ने फिल्म जगत में तब कदम रखा जब हिंदी सिनेमा की महान तिकड़ी (राज कपूर ,दिलीप कुमार,देव  आनंद ) अपने अवसान पर थी .इस तरह इंडस्ट्री में जो एक खालीपन आ गया था ,उसे राजेश खन्ना ने ही भरा .वो मानो इस तिकड़ी  के सम्मिलित  अवतार थे . इन तीनो कीखूबियाँ उनमे थीं . उनके अभिनय में राज कपूर की सादगी थी ,तो दिलीप साहब की नफासत भीऔर देव आनंद का चुलबुलापन भी .उन्होंने दर्शकों को पूरी खुराक दी .बदले में दर्शकों ने उन्हें भरपूर प्यार से नवाजा .तभी फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें रिकार्ड सफलता मिली .लगातार १५ सुपर डुपर हिट फ़िल्में देना उन्ही के बस का था .१५० से अधिक फिल्मों में अभिनय करने वाले राजेश  खन्ना ने २५ सालों तक इंडस्ट्री पर राज किया .उन्होंने साबित किया की वही इस इंडस्ट्री के पहले सुपरस्टार है .

सिनेमा के परदे पर राजेश खन्ना की इमेज एक रोमांटिक नायक की थी .वो एक ऐसे मध्य वर्गीय युवा को चित्रित करते थे जो परम्पराओं से जूझते हुए अपना रास्ता बनाता था .जिसे कभी मान मर्यादा के नाम पर कुर्बानी देनी पड़ती थी तो कभी नियति के निर्णय के आगे विवश  हो जाना पड़ता था .जो बेहद रोमांटिक था लेकिन दिलफेंक जरा भी नहीं .उसे पता  था की उसकी हद कहाँ  तक है .पर वो परम्पराओं का मात्र  मूक समर्थक भी नहीं था ,उसमे बदलाव की बेचैनी और तड़प भी थी .राजेश खन्ना ने फिल्म के परदे पर जिस सहज, सरल और मृदु भारतीय युवा की छवि पेश की ,बाद में अमिताभ बच्चन के "एंग्री यंगमैन "ने उसी का अतिक्रमण किया .

राजेश खन्ना की यादगार फिल्मो की लिस्ट बहुत लम्बी है .उसे यहाँ दुहराने से कोई फायदा भी  नहीं .फिलहाल ये वक्त है उस कष्ट से उबरने का जो वो जाते जाते हमें दे गए है .एक कलाकार जीवन भर हमारा मनोरंजन करता है ,पर आखिरी वक्त में तो हमारी आँखे नम कर ही जाता है .

रविवार, 15 जुलाई 2012

ओबामा की नेक सलाह

तो आज सबको पता चल ही गया की भारत की अर्थव्यवस्था के  विकास में सबसे बड़ा रोड़ा क्या है .इसका सारा क्रेडिट जाता है अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को .इन्होने गहन मंथन के बाद  आखिर इस गुत्थी को सुलझा ही दिया .पी टी आई को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया  कि खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश की मंजूरी न दे कर भारत सरकार ने अर्थव्यवस्था की विकास दर   को मंद बना रखा है .विदेशी निवेश (अर्थात अमेरिकी निवेश )को मंजूरी दे कर हमारी सरकार अर्थव्यवस्था  की तीव्र विकास दर का लुत्फ़ तो उठाएगी ही ,साथ ही जो ढेर सारा रोजगार सृजित होगा वो अलग ....हम सब धन्य हुए जो ओबामा महोदय ने अपना कीमती समय दे कर भारत जैसे देश के बारे में इतना चिंतन किया .

दूसरे के फटे में टांग अडाना अमेरिका का पुराना शगल रहा है .विश्व का शायद ही कोई देश हो जिसके आतंरिक या वाह्य मामलों में अमेरिका को दिलचस्पी ना हो .और अगर बात भारतीय उप महाद्वीप के देशों की हो तो ये कुछ ज्यादा ही वाचाल हो जाता है.भारत पकिस्तान के बीच तनाव को गुप चुप हवा देने में अमेरिका का हाथ सदा से रहा है ....वैसे ओबामा ने आज ही एक और बयान दिया है कि भारत पकिस्तान के मसले दोनों देशो को आपस में मिल कर सुलझाना चाहिए .

ओबामा ने आज अमेरिकी कूटनीति कि एक नायब मिसाल पेश कि है .अभी कुछ ही दिन पहले टाइम मैगजीन  ने भारतीय प्रधानमंत्री की रैंकिंग जारी करते हुए उन्हें एक ख़राब प्रधान मंत्री बताया था .ओबामा का बयान उसकी अगली कड़ी है .पहले वो भारतीय प्रधानमंत्री कोहीनता बोध कराते है ,और अब उससे उबरने का मौका सुझा  रहे है ..मनमोहन सिंह एक ख़राब प्रधान मंत्री इसलिए है क्योंकि यहाँ अर्थव्यवस्था सुस्त है ,इसे तेज करने का उपाय ये है कि वो अमेरिकी कंपनियों को भारत के खुदरा क्षेत्र में उतरने दे .ऐसा होने पर .हो सकता है टाइम के किसी अगले अंक में ये छपे कि मनमोहन सिंह  सबसे बेहतर प्रधानमंत्री है .ध्यान रहे अमेरिका ने ये दोनों कसरत तब की है जब उसे पता है कि वित्त मंत्रालय इस वक्त मनमोहन के पास है ,और भारत में उनकी छवि आर्थिक सुधारों के जनक की है .भारत में प्राइवेट कंपनियों के लिए रास्ता खोलने वाले वही है .

इसके अलावा भारत -पाक रिश्तों पर टिप्पड़ी दे कर ओबामा अपनी एक तटस्थ छवि भी प्रस्तुत करते है .वो कहते है की भारत ,पाक को अपने रिश्ते कैसे मधुर बनाने है ये बताना अमेरिका का काम नहीं है ....पर भारतीय अर्थव्यवस्था शायद अपवाद है .

ओबामा ने आज एक तीर से कई शिकार किये है ,इससे उनका भी हित सधता है .इस वक्त वो राष्ट्रपति चुनावो की तैयारी में है . इस चुनाव में वे भी एक उम्मीदवार  है .उनका ये तीर अमेरिका के बड़े उद्योगपतियों को भी लक्ष्य कर के छोड़ा गया है .ओबामा  ये जतलाना चाहते है कि उन्हें इन उद्योगपतियों कि कितनी परवाह है .अगर भारत निवेश के रास्ते  खोलता है तो इनकी चांदी  हो जाएगी ..आखिर चुनाव में इनके नोट और सपोर्ट की भारी जरूरत जो है उन्हें .

अंत में ओबामा को धन्यवाद करते हुए यही कहना होगा कि हमें अपने आतंरिक मामलों कि समझ उनसे बेहतर है ,और अपनी कठिनाइयों से निपटने के लिए हमें उधार के विचार या सुझाव कि आवश्यकता तो कत्तई नहीं है
.

शुक्रवार, 13 जुलाई 2012

शर्म हमें मगर क्यूँ आती नहीं

आज पूरा मीडिया सराबोर है .तीन- तीन ब्रेकिंग न्यूज़ ,तीनो मसालेदार .एक न्यूज़ में २० लोग एक लड़की को  नंगा करने की कोशिश कर रहे है ,उसका  वीडियोशूट किया गया ,फिर उसे यू-ट्यूब  पर अपलोड किया गया ....दूसरी खबर जिसमे पुलिस थाने में एक दरोगा एक महिला के साथ दुर्वयवहार कर रहा है ,थाने में तैनात और लोग तमाशबीन की भूमिका में खड़े रहते है ,आखिर ऐसे दुर्लभ दृश्य किस्मतवालो को ही देखने को मिलते है ..,मामले का खुलासा  तो तब होता है जब वो दिलेर औरत किसी तरह खुद भाग कर बाहर आती है .मीडिया के पहुँचते ही सारे  पुलिसवाले दरोगाजी   के बचाव में आ जाते है कि वो मनोरोगी है ..ये जवाब काबिले गौर है .हमारी आप की हिफाजत करने के लिए सरकार ने ख़ास तौर पे मनोरोगी थानेदार नियुक्त कर रखे है ...ऐसी सरकार को शत -शत नमन है ......तीसरी खबर ऐसी है जो दुनिया की किसी भी भाषा में शायद बयां नहीं की जा सकती ....एक नाबालिग लड़की को उसीके परिजनों (भाई और भाभी ) ने गर्त में धकेल दिया .....कुल मिला कर आज तो इलेक्ट्रानिक मीडिया की चांदी है. टी आर पी बढ़ाने का सुनहरा मौका?

आइये टेलीविजन से बाहर  की दुनिया पर जरा गौर फरमाएं ...ये सब तो होता ही रहता है ..आखिर इतना बड़ा देश है ...थोडा राज काज पर नजर डालें ...इन तीन शर्मनाक हादसों के बाद  हमारे महान अर्थशाष्त्री प्रधानमंत्री हमेशा की तरह खामोश है ,विश्व की सबसे ताकतवर महिलाओं में से एक और केंद्र सरकार की आलाकमान श्रीमती सोनिया गाँधी (जो इत्तेफाक से खुद भी एक महिला है ) बिलकुल चुप है ...क्योकि उनकी हिंदी अच्छी नहीं है ,वो तभी बोलती है जब उन्हें कुछ लिख कर दिया जाता है .देश के अगले संभावित राष्ट्रपति अपना समर्थन जुटाने में मशगूल है ,वैसे पिछले दस सालों में वो तभी बोलते थे जब मनमोहन सरकार पर कोई संकट आता था ,यानी ये उनकी दिलचस्पी का विषय नहीं है ...बाबा रामदेव ,अन्ना हजारे ,अरविन्द केजरीवाल केवल कांग्रेस के भ्रष्टाचार पर गला फाड़ते है ,अगर तीन महिलायों के साथ सरेआम दुर्वयवहार हुआ तो ये बेचारे क्या करे ,ये कोई भ्रष्टाचार का मुद्दा तो है नहीं ...हमारे बुद्धिजीवी भी ऐसी रोजमर्रा की घटनाओ पर कुछ कहने के आदी नहीं है,अगर इमरजेंसी ,भोपाल गैस त्रासदी ,वर्ड ट्रेड सेंटर,ब्रह्मेश्वर दिव्वेदी  हत्याकांड या नक्सलियों पर हमला  जैसी कोई घटना होती तो ये लोग भी अपनी कीमती राय व्यक्त  करते .....हाँ  अगर कवि लोग चाहेंगे तो एक आध महीने में एक कविता इस घटना पर जरूर लिख मारेंगे ,पर अभी उन्हें छेड़ने की जरूरत नहीं है

कहने सुनने के तौर पर एक बयान आया है ,पुलिस सरगना (अर्थात डी जी पी) का कि हम देश के हर नागरिक के पीछे पुलिस का आदमी नहीं खड़ा कर सकते ..पर जनाब यहाँ तो मामला थाने में ही  रेप की कोशिश का है .इसका क्या जब रक्षक ही भक्षक बन जाये ,तिजोरी ही हार को निगल जाये .तब क्या करे ये मुआ आम आदमी ..किस फ़रिश्ते के सामने लगाये गुहार .या फिर शर्म बेबसी और जलालत से तंग आकर डूब मारे कहीं  जा कर .

ये घटनाये दुनिया की तमाम लक- दक पे एक बदनुमा दाग की तरह है .हमारे सभ्य होने पे एक सवालिया निशान लगाती है ये घटनाये .भारतीय संविधान  की प्रस्तावना में आये "लोक कल्याण कारी राज्य " पद की एक दुखद पैरोडी है ये घटनाये . आजादी के साठ साल हो जाने के बावजूद आज तक हम  महिलायों के लिए एक सुरक्षित कोना नहीं बना पाए .समाज ,क़ानून यहाँ तक कि उसका घर तक सुरक्षित नहीं है उसके लिए .

महिलायों पर हिंसा के न जाने कितने प्रकार है ,ये तो कोई अपराध विज्ञानी ही बेहतर बता सकता है ..पर इन  सब में सबसे त्रासद होता है उसके आत्मसम्मान, उसकी इज्जत कि धज्जी उड़ाना.ऐसी घटनाये उसे एक जीवित लाश में बदल कर रख देती है .कोई विरला ही होगा जो इस कदर प्रताड़ित होने के बाद फिर से अपना जीवन सामान्य ढंग से जी सके .

तमाम किताबी सैद्धांतिकी के बावजूद महिलायों को ले कर व्यावहारिक  सच बिलकुल उलट है .महिलाओं  के बारे में  हमारी सोच में कोई मूलभूत परिवर्तन आज तक नहीं हो सका है .वही मध्ययुगीन (या शायद और भी पीछे ?)सोच की गठरी हमारे दिमाग में रखी है .. नई.तकनिकी ने महिलायों के अपमान की कुछ और  प्रविधियां विकसित की है .यम यम एस उनमे से एक है .नेट पर आज ऐसे विडियो का अच्छा खासा दर्शक वर्ग है .दुस्साहस या कुछ विचित्र घटनाओ वाले एडल्ट  विडियो सभ्य समाज में चटकारे ले कर देखे जाते है .आसाम के गुआहाटी  की घटना एक ऐसा ही विडियो तैयार करने  वाली  विकृत सोच की कोशिश थी .अफ़सोस की उनके मंसूबे पूरे हो गए .
बहरहाल आज की ये तीनों शर्मनाक घटनाये बेहद करुणऔर दारुण है .हर एक  संवेदनशील व्यक्ति इन्हें सुन कर बौखला गया  है साथ ही निजाम की उदासीनता देख कर वो  बेहद हताश भी है ...क्या आपको नहीं लगता की हमारी केंद्र सरकार को आज का दिन "राष्ट्रीय शर्म दिवस" के रूप में घोषित कर देना चाहिए