मंगलवार, 24 जुलाई 2012

संगमा की बौखलाहट


राष्ट्रपति चुनाव के  नतीजे सामने है .प्रणव मुखर्जी के पक्ष में जो अंकगणित  थी , ये परिणाम उसी के अनुरूप है .प्रणव ने भारी जीत दर्ज की है .इसमें संप्रग गठबंधन का तो हाथ है ही साथ ही उनकी निजी छवि ने भी वोट जुटाने में अहम् भूमिका  अदा की है .प्रणव आज की राजनीति में उन कुछ बिरले नेताओं में से है जिनकी पैठ हर दल में है . वे राजनीति के पुराने धुरंधर  है जिनके पास एक लम्बा प्रशासनिक और संसदीय अनुभव है .उनके जैसे कार्यकर्ता के लिए ये उचित ही है की उनकी विदाई देश के सर्वोच्च पद से हो .राष्ट्रपति चुनाव परिणाम को ले कर आज पूरे देश में संतोष और  स्वागत  का भाव है ., एक शख्स को छोड़ कर .ये है उनके प्रतिद्वंदी पी ए संगमा.

प्रणव मुखर्जी को जीत की औपचारिक  बधाई देने के बाद उन्होंने कोर्ट जाने  की बात  कही है .वे राष्ट्रपति चुनाव परिणाम को हाईकोर्ट में चुनौती देंगे .इससे पहले वे प्रणव की उम्मीदवारी को अदालत में चुनौती  दे चुके है .पर कोर्ट ने उनकी यह अपील ख़ारिज कर दी थी .

अपने प्रचार के दौरान संगमा की बेचैनी कई रूपों में सामने आ चुकी है .उन्होंने देश के पहले आदिवासी  राष्ट्रपति के रूप में चुने जाने की अपील की .अंतरात्मा की आवाज के आधार पर वोट करने को कहा .अंत तक वो कहते रहे की परिणाम आने के बाद कुछ चमत्कार अवश्य होगा .पर ऐसा कुछ न हो सका .संगमा खुद भी लम्बा राजनीतिक अनुभव रखते है .लोक सभा अध्यक्ष  के रूप में उन्होंने काफी प्रतिष्ठा अर्जित की थी .उन्हें इतना तो पता होगा ही की चुनाव अंतरात्म्मा की आवाज  के आधार पर न तो लड़े जाते है ना ही चमत्कारों के दम पर जीते जाते है .एक नेता की व्यक्तिगत  खूबियाँ और उसका योगदान ही ऐसे मौके पर काम आता है .पर इसको क्या कहा जाय की वो अपने राज्य मेघालय में भी प्रणव मुखर्जी से पीछे रहे .उनके राज्य के जनप्रतिनिधियों ने भी उनके इस चमत्कारी अनुष्ठान में उनका साथ नहीं दिया . यही नहीं संगमा के समर्थन में आये राजग के घटक दलों में भी उनको ले कर आम राय नहीं बन पायी .जनता दल( यू) और शिवसेना ने उनके खिलाफ वोट किया .उन्हें ममता बनर्जी के  समर्थन की पूरी आस थी पर आखिरी  वक्त में वे भी बंगाली मानुष के साथ हो ली .फिर ये समझ में नहीं आता की संगमा को अपनी जीत की आस क्यूँ कर थी .

संगमा एक ओर अपनी हार को स्वीकार तो चुके है ,पर शायद चमकारों पे उनका भरोसा अब भी कायम है .वे कोर्ट के सहारे राष्ट्रपति चुनाव प्रक्रिया को कटघरे में खड़ा करना चाहते है .ऐसे में संगमा जैसे वरिष्ठ  नेता कुछ जरूरी बातों को भूल जाते है ,जिनका अहसास उन्हें हर पल होना चाहिए .भारत में राष्ट्रपति चनाव की अपनी एक गरिमा है. देश के सर्वोच्च पद का ये चुनाव सदा विवादों से परे रहा है .पर लगता है ,संगमा को  इस परंपरा की तनिक भी परवाह नहीं है .वो इतिहास में एक शर्मनाक मोड़ लाना चाहते है .ये  स्थिति बेहद निराशजनक  है .अब देखना है कि वे इस सर्वोच्च पद कि मर्यादा का सम्मान करते है या अपनी बौखलाहट छुपाने का ये आखिरी दाव भी आजमाते है .

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