रविवार, 15 जुलाई 2012

ओबामा की नेक सलाह

तो आज सबको पता चल ही गया की भारत की अर्थव्यवस्था के  विकास में सबसे बड़ा रोड़ा क्या है .इसका सारा क्रेडिट जाता है अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को .इन्होने गहन मंथन के बाद  आखिर इस गुत्थी को सुलझा ही दिया .पी टी आई को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया  कि खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश की मंजूरी न दे कर भारत सरकार ने अर्थव्यवस्था की विकास दर   को मंद बना रखा है .विदेशी निवेश (अर्थात अमेरिकी निवेश )को मंजूरी दे कर हमारी सरकार अर्थव्यवस्था  की तीव्र विकास दर का लुत्फ़ तो उठाएगी ही ,साथ ही जो ढेर सारा रोजगार सृजित होगा वो अलग ....हम सब धन्य हुए जो ओबामा महोदय ने अपना कीमती समय दे कर भारत जैसे देश के बारे में इतना चिंतन किया .

दूसरे के फटे में टांग अडाना अमेरिका का पुराना शगल रहा है .विश्व का शायद ही कोई देश हो जिसके आतंरिक या वाह्य मामलों में अमेरिका को दिलचस्पी ना हो .और अगर बात भारतीय उप महाद्वीप के देशों की हो तो ये कुछ ज्यादा ही वाचाल हो जाता है.भारत पकिस्तान के बीच तनाव को गुप चुप हवा देने में अमेरिका का हाथ सदा से रहा है ....वैसे ओबामा ने आज ही एक और बयान दिया है कि भारत पकिस्तान के मसले दोनों देशो को आपस में मिल कर सुलझाना चाहिए .

ओबामा ने आज अमेरिकी कूटनीति कि एक नायब मिसाल पेश कि है .अभी कुछ ही दिन पहले टाइम मैगजीन  ने भारतीय प्रधानमंत्री की रैंकिंग जारी करते हुए उन्हें एक ख़राब प्रधान मंत्री बताया था .ओबामा का बयान उसकी अगली कड़ी है .पहले वो भारतीय प्रधानमंत्री कोहीनता बोध कराते है ,और अब उससे उबरने का मौका सुझा  रहे है ..मनमोहन सिंह एक ख़राब प्रधान मंत्री इसलिए है क्योंकि यहाँ अर्थव्यवस्था सुस्त है ,इसे तेज करने का उपाय ये है कि वो अमेरिकी कंपनियों को भारत के खुदरा क्षेत्र में उतरने दे .ऐसा होने पर .हो सकता है टाइम के किसी अगले अंक में ये छपे कि मनमोहन सिंह  सबसे बेहतर प्रधानमंत्री है .ध्यान रहे अमेरिका ने ये दोनों कसरत तब की है जब उसे पता है कि वित्त मंत्रालय इस वक्त मनमोहन के पास है ,और भारत में उनकी छवि आर्थिक सुधारों के जनक की है .भारत में प्राइवेट कंपनियों के लिए रास्ता खोलने वाले वही है .

इसके अलावा भारत -पाक रिश्तों पर टिप्पड़ी दे कर ओबामा अपनी एक तटस्थ छवि भी प्रस्तुत करते है .वो कहते है की भारत ,पाक को अपने रिश्ते कैसे मधुर बनाने है ये बताना अमेरिका का काम नहीं है ....पर भारतीय अर्थव्यवस्था शायद अपवाद है .

ओबामा ने आज एक तीर से कई शिकार किये है ,इससे उनका भी हित सधता है .इस वक्त वो राष्ट्रपति चुनावो की तैयारी में है . इस चुनाव में वे भी एक उम्मीदवार  है .उनका ये तीर अमेरिका के बड़े उद्योगपतियों को भी लक्ष्य कर के छोड़ा गया है .ओबामा  ये जतलाना चाहते है कि उन्हें इन उद्योगपतियों कि कितनी परवाह है .अगर भारत निवेश के रास्ते  खोलता है तो इनकी चांदी  हो जाएगी ..आखिर चुनाव में इनके नोट और सपोर्ट की भारी जरूरत जो है उन्हें .

अंत में ओबामा को धन्यवाद करते हुए यही कहना होगा कि हमें अपने आतंरिक मामलों कि समझ उनसे बेहतर है ,और अपनी कठिनाइयों से निपटने के लिए हमें उधार के विचार या सुझाव कि आवश्यकता तो कत्तई नहीं है
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