गुरुवार, 5 जुलाई 2012

बादलों की आँख मिचौली

आषाढ़ बीत गया ,सावन में भी दो तीन दिन निकल गए ,पर धरती अभी प्यासी की प्यासी ही है .तालाब पोखर सूख गए है .नदियों का हाल भी बुरा है .पुश पक्षी, जड़ चेतन सब कुम्हला गए है .सब आसमान की तरफ मानो टकटकी बांध कर देख रहे हो.  प्रार्थना कर रहे हो और ये कह  रहे हो की अब तो इंतिजार की इन्तिहाँ हो गयी है .

पानी की चाह सबसे आदिम चाह है .मनुष्य के इतिहास का कोई भी दिन पानी के बगैर नहीं बीता होगा .हर सुख हर दुःख का साक्षी रहा है पानी .इस तरह  पानी हमारा सबसे प्राचीन दोस्त है .........वही सृष्टि का प्राण है .जीवन तत्व है .जीने की आस है .

आंकड़े इस वक्त चाहे जो कह रहे हो पर हालात अब नाजुक मोड़ पर  पहुँच गए है .बारिश की आस अब हमें रुलाने की स्थिति में ले जा रही है .समूचा उत्तरभारत एक अघोषित  सूखे की चपेट में है .धान की अभी तक बुवाई तक नहीं हो सकी है .खरीफ की अन्य फसले भी बर्बादी की कगार पर है .देश का लगभग ४५% भूभाग ऐसा है जहाँ अभी पानी की एक बूँद भी नहीं गिरी .जमीन में दरारें पड़ने को है .किसानो की आँखों में अभी भी  अनिश्चतता के बादल मडरा रहे है .

भारत में ६०-६५% आबादी अभी भी कृषि पर निर्भर करती है .ये दीगर बात है के कुछ चेत्रो में ये निर्भरता कम हुयी है ,पर बहुसंख्यक किसान अभी भी मानसून की बाट  जोहते है .खेती की पैदावार काफी कुछ मानसून के समय से आने पर निर्भर करती  है .देरी से या कम मात्रा  में होने वाली बारिश खेती के लिए तमाम संकट खड़े कर देती है .जाहिर है की ऐसे में पैदावार घटती है जिसका सीधा असर अर्थवयवस्था  पर पड़ता है .सकल घरेलू उत्पाद पर पड़ता है.

अभी कृषि मंत्री ने एक बयां जारी किया है की देश में सूखे की स्थिति भले ही हो पर इससे निपटने के लिए हमारे पास अनाज के पर्याप्त भण्डार है .ये एक तरह से जले पर नमक छिड़कने जैसा है .सरकारी भण्डार गृहों में अनाज की जो दुर्दशा है ,वो किसी से छुपा नहीं है .भंडार गृहों में जितना अनाज रख रखाव की अव्यवस्था के कारण बर्बाद हो जाता है ,अगर वही सार्वजानिक वितरण प्रणाली के तहत आम लोगो तक आसानी से पहुँच जाये तो शायद आम आदमी में भोजन को ले कर इतनी असुरक्षा का भाव न रहे .

बहर हाल आम आदमी इस वक्त दोहरी मार झेल रहा है -एक तो बेतहाशा बढ़ रही महंगाई और दूसरे मानसून की बेरुखी . .......उधर हमारी सरकार के करता धर्ता राष्ट्रपति चुनाव  में व्यस्त है या फिर नक्सलिओं  के नाम पर मासूम आदिवासियों की हत्या करवाने में .









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