गुरुवार, 5 जुलाई 2012

पहले हाँ फिर ना

अखिलेश सरकार ने जैसे तैसे अपने १०० दिन पूरे कर  लिए है  .कुल मिला कर सरकार का प्रदर्शन औसत ही कहा जायेगा .चुनाव से पहले उनकी  पार्टी ने जनता को विकास और बदलाव के एक से बढ़ कर एक सुहाने सपने दिखाए थे .जनता ने उन्हें पूर्ण बहुमत देकर एक सुरक्षित राजनीतिक पारी शुरू करने का अवसर  भी दिया .पर सरकार अभी तक जनता के अरमानो के अनुरूप प्रदर्शन नहीं ही कर पाई है .अखिलेश इस वक्त संभवतः देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री है .उनके सत्ता सम्हालते ही ये उम्मीद मजबूत  हो गयी थी कि  शायद अब उत्तर प्रदेश विकास की पटरी पर आ सके .अखिलेश की  युवा सोच ,उर्जा और नयी  दृष्टि से शायद प्रदेश की तस्वीर में कुछ चटख  रंग भर  जाये  .पर अखिलेश सरकार ऐसा  कुछ करती दिखाई  नहीं दे  रही है .अभी तक उन्होंने  ऐसा कोई भी संकेत  नहीं दिया है जो ये साबित कर सके कि वो जनता की अपेक्षाओं के अनुरूप शासन  चला  रहे  हो.

अभी हाल की कुछ घटनाओ ने अखिलेश सरकार की एक नकारात्मक  छवि  प्रस्तुत  की है .अखिलेश सरकार में इच्छा शक्ति का अभाव साफ़ नजर आने लगा है .निर्णय  लेने में अतिउत्साह, अदूरदर्शिता,इनकी पहचान बनती जा रही है .सरकार ने बिना सोचे समझे ऐसे दो फैसले जनता पर थोपने की कोशिश की जिन्हें विरोधों की वजह से २४ घंटे के भीतर ही वापस लेना. पड़ा सरकार ने बिजली  कटौती को लेकर जो फरमान जारी किया था उसकी अगले २४ घाटों में ही हवा निकल गयी .येही हश्र उस  फैसले का भी हुआ जिसमे विधायको को २० लाख तक की कर खरीदने का वरदान दिया गया था, रातो रात अखिलेश को ये फैसला भी वापस लेना पड़ा. इन दो घटनाओ ने अखिलेश को एक हास्यास्पद  स्थिति में पंहुचा दिया है .

अखिलेश  सरकार की जो एक सबसे बड़ी कमी उभर  कर सामने  आई  है वो है परस्पर  संवाद का अभाव  .अखिलेश सरकार में कई ऐसे अनुभवी और दिग्गज नेता है जो काफी वर्षों से उनकी पार्टी और प्रदेश की राजनीति  में सक्रिय है .उनके पिता खुद  राजनीति  के एक मंजे हुए खिलाड़ी है .अखिलेश को इन सभी  के अनुभवों  का लाभ उठाना चाहिए पर इन दो घटनाओं के अंजाम ने इतना तो खुलासा कर ही दिया की अखिलेश कोई फरमान जारी करने से पूर्व अपने मंत्रिमंडल से शायद ही विचारविमर्श करते हो.वो संभवतः वाह वाही लूटने  के चक्कर  में खुद ही ये दूर की कोड़ियाँ खोज कर लाते है और फिर जनता के सामने उनका मुजाहिरा कर देते है .इसमें हैरत नहीं की अखिलेश के इन दोनों बोल्ड फैसलों के प्रति विरोध के स्वर उनके विधायको में भी सुनायी  दिए .यदि सत्ता सञ्चालन के लिए अखिलेश एक लोकतान्त्रिक पद्धति का अनुसरण करके ,पहले से फुलप्रूफ फैसले लेते तो शायद ये नौबत न आती .

ये सच है की किसी सरकार की विशेष पहचान दो वजहों से बनती है ,एक तो उसके द्वारा लिए गए बोल्ड (या कहे ताजा)फैसले और दूसरा उसके द्वारा किये गए विकास कार्य .अखिलेश सरकार पर जन आकांक्षाओं  का भा री दबाव है. वो जल्द ही अपनी सरकार को एक  लोकप्रिय सरकार में बदलते हुए देखना चाहते है .पर ये सबकुछ बिना किसी हड़बड़ी या उतावलेपन के होना चाहिए .सरकार का हर फैसला पूरी गंभीरता और तैयारी  के साथ होना चाहिए .

  अखिलेश सरकार को अभी काफी लम्बा सफ़र  तय  करना है .तो ये आवश्यक है की वो फूंक फूंक कर कदम रखे ताकि जनता एक युवा मुख्यमंत्री के रूप में लम्बे समय तक उन्हें  याद रख सके.







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