कपिल सिब्बल साहब एक और दूर की कोड़ी खोज कर लाये है कि -देश के शिक्षक पर्याप्त शिक्षित नहीं है .सिब्बल साहब ने जो तीर छोड़ा है वह घूम कर उन्ही को निशाना बना रहा है .यह बात जरूर सही हो सकती है की देश में योग्य शिक्षको का अभाव है या वो लोग शिक्षक के रूप में कार्य कर रहे है जिनमे शिक्षण अभिरुचि है ही नहीं .पर ये प्रश्न अंततः मानव संसाधन विकास मंत्री जैसे जिम्मेदार व्यक्ति को ही कटघरे में खड़ा करते है .जिन एक आध प्रश्नों से सिब्बल साहब रूबरू नहीं होना चाहते वो यहाँ दिए जा रहे है -
- शिक्षकों की योग्यता का निर्धारण जो संस्था करती है वो कपिल जी के मंत्रालय के अधीन कार्य करती है .कपिल जी खुद भी इस सम्बन्ध में काफी माथापच्ची कर चुके है .तो सवाल यह है कि क्या उनके मंत्रालय ने योग्यता निर्धारण के सभी पहलुओं पर विचार कर लिया है ?
- शिक्षको की चयन प्रक्रिया का निर्धारण भी कपिल जी के मंत्रालय की देख रेख में होता है .अभी पिछले वर्ष प्राथमिक शिक्षको के चयन में टी.ई .टी को अनिवार्य किया गया है, सवाल यह है की क्या टी ई टी वह फुलप्रूफ तरीका है जिससे केवल शिक्षण अभिरुचि वाले लोग फ़िल्टर हो कर शिक्षक के रूप में चयनित होंगे ?
- अगला और महत्वपूर्ण प्रश्न है शिक्षण परिस्थिति को ले कर .मान लेते है की सिब्बल साहब ने योग्य और अभिरुचि संपन्न लोगो को शिक्षक के रूप में नियुक्त कर दिया पर उस शिक्षक ने यह अनुभव किया की उस क्षेत्र विशेष में शिक्षण हेतु सहायक परिस्थितियाँ नहीं है .अभिभावक बच्चो की पढाई में रूचि नहीं ले रहे है ,अध्यापक को गैर शैक्षिक कार्यों में लिप्त रखा जाता है ,एक अध्यापक के बजाय एक क्लर्क का काम उससे लिया जाता है .ऐसे में शिक्षा व्यवस्था प्रभावित तो जरूर होगी .तो प्रश्न यह है की क्या सिब्बल साहब किसी ऐसी प्रणाली या की आवश्यकता अनुभव करते है जो शिक्षको को इन व्यावहारिक कठिनाइयों से निजात दिला सके ?
और सिब्बल साहब क्या आप और आपकी सरकार शिक्षक को एक आम सरकारी कर्मचारी समझना फोरन बंद नहीं कर सकती .
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