रविवार, 24 जून 2012

मृत्युं शरणम् गच्छामि

 सन २००४ में रान   ब्राउन की एक किताब आई थी -दी आर्ट आफ सुसाइड .अपने समय की बेस्ट सेलर रही यह किताब आत्महत्या के पूरे  वैश्विक इतिहास का लेखा जोखा प्रस्तुत करती है .आत्महत्या का दर्शन सभ्यता के बिभिन्न चरणों में कब और कैसे बदला ,इस किताब में बड़ी बेबाकी से दर्ज हुआ है .कई प्राचीन सभ्यताओं में आत्महत्या को अनैतिक या अपराधिक प्रयास नहीं माना  जाता था .किताब के मुताबिक ऐसा क्रिश्चियनिती के उदय से पहले था .प्राचीन ग्रीस और रोम इसके उदाहरण है जहाँ आत्महत्या करने वाले की किसी हीरो की तरह पूजा की जाती थी .उनकी प्रतिमाएं स्थापित की जाती थी और उनके नाम पर उत्सव होते थे .

आधुनिक योरोपीय दर्शन में कुछ ऐसे विचारक भी हुए है जिन्होंने "मरने की स्वाधीनता (right to die)" की भरपूर वकालत की है .नीत्शे ,डेविड ह्युम ,जेकब एपल कुछ ऐसे ही विचारक थे .ये नास्तिक विचारधारा का चरम था जो हर प्रकार की नैतिकता को स्थगित करने की सलाह देता था .

पर आज ,स्थिति बिलकुल ही भिन्न है .कोई भी धर्म या राज्य हमें आत्म हत्या की इजाजत नहीं देता है .आत्महत्या एक अपराध है ठीक उसी तरह जैसे किसी और की हत्या करना .भारतीय कानून में तो  दोनों अपराधों के लिए एक सामान धाराएँ सुनिश्चित की गई है .

आज वैश्विक स्तर  पर आत्महत्या के प्रति एक नकार का भाव है .यह निश्चित रूप से कायरता है ,जीवन से पलायन है और ईश्वर  से मिले एक खूबसूरत तोहफे का अपमान भी .....हमारी सोच और माहोल  दोनों में पर्याप्त बदलाव आया है ,पर अफ़सोस तो इस बात का है की आत्महत्या की घटनाएँ धडल्ले से हो रही है .कारण जो भी हो .

अभी अंतर्राष्ट्रीय मेडिकल असोसिएसन  की एक रिपोर्ट  आयी  है आत्महत्या को ले कर .इस अध्ययन में पाया गया है की विकासशील देशो में आत्महत्या की घटनाएँ तेजी से बढ़ रही है .आत्महत्या की घटनाएँ भी इन्ही देशो में सबसे ज्यादा हो रही है .सन २०१० में आत्महत्या की १.८७ लाख घटनाये केवल भारत में हुई है .चीन में यह संख्या कोई २ लाख के आस पास बताई गई है .
यह अध्ययन कई चोंकाने वाले नतीजे पेश करता है .आत्महत्या में सबसे जादा भागीदारी पढ़े लिखे ,महानगरीय ,संपन्न नोजवानो की है .दक्षिण भारत के राज्यों तमिलनाडु ,आंध्र प्रदेश ,कर्णाटक और केरल में इन घटनाओ की तादाद सबसे जादा है .आत्महत्या करनेवालों में वो लोग सबसे जादा शामिल है जिनकी उम्र १५-२९ वर्ष है .

आज का मघ्यवर्गीय युवा संभवतः  इतिहास के सर्वाधिक दबाव वाले युग में जी रहा है .सुखी संपन्न होने की आकांक्षा आज बहुत तीव्र हो चुकी है .परिवार ,समाज करियर और प्रेम उन्हें लगातार तनावग्रस्त बना रहा है .उनका समायोजन गड़बड़ा रहा है.वो जल्दी ही अल्कोहलिज्म और ड्रग एडिक्सन  की गिरफ्त में चले जाते है .पर यह प्रवृति उनके लिए खतरनाक साबित होती है .जानकार  तो साफ कहते है की भारतीय युवाओ में आत्महत्या का मुख्य कारण है -अवसाद ,अल्कोहल और दृग्स  .पर इन सबके पीछे होता है उनके जीवन में मैनेजमेंट का अभाव .

यदि महिलाओं की बात करे तो आत्महत्या करने में उनका प्रतिशत पुरुषों से कही जादा है ,पर कारण बिलकुल भिन्न है .रिपोर्ट के मुताबिक विधवा ,तलाकशुदा या अकेली महिलाओं में ये प्रवृति अधिक पाई जाती है .क्योंकि उनमे अवसादग्रस्त होने की संभावना अधिक रहती है

वैसे भी हमारे देश में मानसिक स्वास्थ्य  के प्रति जागरूकता का पर्याप्त अभाव है .आज भी देश में कुछ गिने चुने मनोचिकित्सक  और उनके काउंसलिंग सेंटर है .आज की तेज रफ़्तार जिंदगी में यह हमारा खुद का दायित्व बनता है की हम अपने मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य  दोनों की समुचित देखभाल करें .बच्चों को भी इसके प्रति जागरूक बनायें .उनमे स्वस्थ आदतों का विकास होने दें .उन्हें जीवन की सुन्दरता ,निरंतरता और अनिवार्यता का बोध कराएँ .

इसी क्रम में स्कूलों और कालेजो में समय समय पर युवाओं  के काउंसलिंग की व्यवस्था  होनी चाहिए .ठीक उसी तरह जैसे डांस ,म्युजिक  और योगा क्लासेज होती है .नहीं तो हमें इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना से हमेसा दो चार होना ही पड़ेगा .आज जब हम अर्थवयवस्था में विकास के नए नए लक्ष्य निर्धारित कर रहे है ,तो यह आवश्यक हो जाता है की हम अपने बेशकीमती ,युवा और ऊर्जावान  मानव संसाधन को यूँ  ही बर्बाद न होने दे .

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